पीछे उस छोर पर
अपनों को छोड़कर
रुका दिल किस मोड़ पर
मोड़ के देख देख जरा
पीछे उस छोर पर
भुला है कुछ
तू उस ओर पर
अपनों को छोड़कर
रुका दिल किस मोड़ पर
दबी दबी याद पड़ी है
चूल्हे में वो बुझी आग पड़ी है
एक दो टूटे बरतन
तेरे खिलौने
कुछ अधूरी बात पड़ी है
अपनों को छोड़कर
रुका दिल किस मोड़ पर
रूठा बचपन
छूटी झूठी जवानी
तकिया किनारे गिरा
वो आँसूं का पानी
चला सब गीला छोड़कर
अपनों को छोड़कर
रुका दिल किस मोड़ पर
अब भी कुछ साथी
इन्तजार सांस बाकी
खड़ा है वो एक ओर
तू खड़ा दूजी ओर पर
धक धक कि डोर पर
अपनों को छोड़कर
रुका दिल किस मोड़ पर
मोड़ के देख देख जरा
पीछे उस छोर पर
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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