तू गयी जब
तू गयी जब रिमझिम
बरसात का जोर शोर था
सांसों के होंठो पर
मेरा मन हिचकोले ले रहा था
तू गयी जब रिमझिम
बरसात का जोर शोर था
प्रेम मेरा उस तालब में
अब तेरे साथ गोते ले रहा था
तू गयी जब रिमझिम
बरसात का जोर शोर था
अंधेर में वो जगमग तारा
ढुलकता झुलता मृगजल वो हवा सा भरा
तू गयी जब रिमझिम
बरसात का जोर शोर था
आकाश में मिटटी की खुशबू सा फैला
आहिस्ता बहकर ओढ़े वो तेरा गीला पन
तू गयी जब रिमझिम
बरसात का जोर शोर था
प्रेम प्रतिका तेरा साथ लिये खड़ा
मन भावना में बह रहा था
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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