तस्वीर
मेरी
तस्वीर के हैं दो रूप
एक स्वरूप है दूसरा अनुरूप
मेरी
तस्वीर के हैं दो रूप......................
मिल जाते हैं टंगे से
दिल दीवारों पे छपे पड़े से
बैठ के दोनों के पास मैं
मेरी
तस्वीर के हैं दो रूप......................
बाते करती मुझसे
अकेले में कभी वो तुझसे
बीते पल बीते कल मेरे
मेरी
तस्वीर के हैं दो रूप......................
आ चुरा लें उनसे कुछ
ना यूँ व्यर्थ वो सजे टंगे हैं
इस मन से वो क्यों बंटे हैं
मेरी
तस्वीर के हैं दो रूप......................
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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