उलझे लोग यंहा उलझा देश मेरा
पथ प्रकाशित नही साफ साफ
अन्धेरा - कोहरा घना छाया यंहा
टूटी लाठी के सहारे चल रहा
उलझे लोग यंहा उलझा देश मेरा
सफेद रंग बहुत हैं रंगमंच पर सजे
पर सहमा है वो काला रंग अडिग मन में बसा
वो उजाला नाकाफी है उसे सुलझाने को
उलझे लोग यंहा उलझा देश मेरा
दशकों से उलझा है वो इस जाल में
कैसे छुटकारा मिलेगा दिल को बस पांच साल में
वो बुनता रहेगा तू उलझता रहेगा
उलझे लोग यंहा उलझा देश मेरा
पथ प्रकाशित नही साफ साफ
अन्धेरा - कोहरा घाना छाया यंहा
टूटी लाठी के सहारे चल रहा
उलझे लोग यंहा उलझा देश मेरा
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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