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बेरोजगारी


बेरोजगारी

ढूंढते रहते हैं हम तो
अपने निशाँ कदमों के अक्सर
मिल जाते है रोज वो अब हमको
छोड़े थे हमने
वो जिस राह जिस पथ पर
ढूंढते रहते हैं हम तो
अपने निशाँ कदमों के अक्सर........

मिलती है रुसवाईयाँ पड़ी वंहा पर
बंद फाइलें टकटकी लगाती हर जगहा पर
मोड़ आया मैं मोड़ गया
तकदीर है कि वो मगर मोड़ती नही है
ढूंढते रहते हैं हम तो
अपने निशाँ कदमों के अक्सर........

हताश है दिन हताश है रातें
बेरोजगारी खटकती रहती है दरवाजे
हर पल बजती है वो ही धुन अब तो
दिलो दिमाग को अब वो सूना करती
ढूंढते रहते हैं हम तो
अपने निशाँ कदमों के अक्सर........

ढूंढते रहते हैं हम तो
अपने निशाँ कदमों के अक्सर
मिल जाते है रोज वो अब हमको
छोड़े थे हमने
वो जिस राह जिस पथ पर
ढूंढते रहते हैं हम तो
अपने निशाँ कदमों के अक्सर........

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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