ये मेरी झँपा
बस
इतनी सी देरी
हो गयी खफा
ये मेरी झँपा
तू क्यों बथा
बस इतनी सी देरी
हो गयी खफा
घास के गेड़ी
अब तो खुला
कै डालु लटी च
ई रुसेली पोटली
कै बाटा मा बथा
कब तू हंसली ये तो बता
बस इतनी सी देरी
हो गयी खफा
ना रूस ना रूस
ना ईं जिकुड़ी ते तू दुखा
ना बैठी यकुली
ना मेरु जियु यु झुरा
छुईं लगा मेर छुयेंडि
अब त ये गुस्सा थूक दे या
बोल्युं मान मेरी झँपा
मान जा या
बस इतनी सी देरी
हो गयी खफा
बस
इतनी सी देरी
हो गयी खफा
ये मेरी झँपा
तू क्यों बथा
बस इतनी सी देरी
हो गयी खफा
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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