ADD

अब ऊँगली उठाना


अब ऊँगली उठाना

अब ऊँगली उठाना बड़ा आसान हो गया
ध्यानी वो मेरी एक अब पहचान बन गया

शीशे के मकानो से घिरा था अपने मै
शीशा चटका मेरे सर वो इल्जाम आ गया

दूर वंह पर धुँआ उठा रहा अब कभी कभी
शमशान बुझा है अब रखों का नाम आ गया

बस मुंह खोल देते हैं बिना सोचे समझे
हमने बोल दिया तो वो सरेआम हो गया

अब तो महफिल सजती है इनकी ही
हमने महफिल सजाई वो वीरान हो गया

अब ऊँगली उठाना बड़ा आसान हो गया
ध्यानी वो मेरी एक अब पहचान बन गया

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित
बालकृष्ण डी ध्यानी
Reactions

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ