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आस्था प्रेम

आस्था प्रेम

दो हाथों को
वो जोड़ कर
आँखों से वो
कुछ बोल कर
मन को मन से
वो प्रतीति कर गया

दोषसिद्धि था
ये तन मेरा
धारणा किया था मन मेरा
पर कुछ मेरे लिये वो छोड़ गया
वो अपने आप में रहा कर
मग्न था वो उस राह में

आस्था और उसके
उस विशवास में
विश्व ने रची श्रद्धा
इस दिल की बाहार में
प्रत्यय करता रहा
ईमान से वो कह गया

मत अपना वो दे गया
विश्वास की राह में
निष्ठा को वो ले साथ साथ
भरोसे को वो एक सहारा दे गया
वो आस्था और मेरी भक्ति में
प्रेम का रंग भर गया

दो हाथों को
वो जोड़ कर
आँखों से वो
कुछ बोल कर
मन को मन से
वो प्रतीति कर गया

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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