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ठिकाना बस बस्म में


ठिकाना बस बस्म में

वो टूटी फूटी
किस्मत खड़ी
बिखरी बिखरी
राहों में वो पड़ी

कविता के लगे थे
उस को दो जोड़ पंख
पन्नो पन्नो में
मची होड़ उसके संग

दो दिन बाद
वो दरवाज तंग था
जिसमे लिखा
वो मेरा ही छंद था

वो मुझको देखता
मैं उसे देखता अब
बस किस्सा पुराना
अब मैखाना बंद था

नजरों ने पी थी कभी
मेरी गजल हंसी थी कभी
कैद अपने ही गम में
ठिकाना मेरा बस बस्म में

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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