अब ना तुम
अब ना तुम गले लगाओ
ना आँखों से तुम अश्क गिराओ
काबिल नही हूँ मै तुम्हरे
ना मेरी तुम राह निहारो
तस्वीर मेरी रो पड़ी होगी
जब तेरे हिर्दय से वो लगी होगी
कितनी बार दीवारों से उतरी होगी
अब ना तुम उसे यूँ उतारो
अकेला पड़ा हूँ दूर हो के
बिखरा पड़ा हूँ माला से टुट के
उस टूटी माला को ना अब जोड़ो
तकियों के खोलों को धो लो
बह जाने दू अब मुझको ऐसे
ना कोई इंतजार के बाँध लगाओ
बह गया अब कीच रह गया मै
अब ना तुम कोई कमल खिलाओ
अब ना तुम गले लगाओ
ना आँखों से तुम अश्क गिराओ
काबिल नही हूँ मै तुम्हरे
ना मेरी तुम राह निहारो
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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