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मै अपने में लगा रहा



मै अपने में लगा रहा

बढ़ा था उन अपनों कि ओर
अकेला में
कौन से कोने छुपा रखा था इतना प्यार
ना कर सका इजहार
हाय वो मेरा प्यार

कैसी हिचक थी कैसा था वो मन
पास थी तुम तब मै दूर कंही
दूर हो जब तुम
बस अब तुम ही तुम पास मेरे
हाय वो मेरा दीवानपन

बोलता है अब वो
सुनता वो अब भी
धड़कता है पर धड़कन और कंही
गुमसुम आज खड़ा क्यों महसूस करता है
हाय मेरा अकेलापन

चलता है रोक रोक कर
देखता है क्यों पीछे मोड़ मोड़कर
फिर ना जाने क्यों क्या सोचता है
अपना बढ़ कदम पीछे खिंच लेता है
हाय मेरी वो मजबूरी

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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