ADD

हैरान हूँ परेशान हूँ मै


हैरान हूँ परेशान हूँ मै

हैरान हूँ परेशान हूँ मै
जंहा भी जाऊं निराश हूँ
प्रातःकाल अब भी अंधेरा अँधेरा है
जाने सूरज मेरा कंहा छुप गया है

सब चुप चुप है
अपने मुख से सब विमुख है
शब्द खोये खोये यंहा
मेरे अक्षर धूल में सोये हुये है
हैरान हूँ परेशान हूँ मै
जंहा भी जाऊं निराश हूँ

दोपहरा की गर्मी शांत नहीं होती
शाम की संध्या अब तो तपती
रात का चाँद अब क्यों पिघलता
धरती अब हरयाली खोती जाती
हैरान हूँ परेशान हूँ मै
जंहा भी जाऊं निराश हूँ

कोई सुनता बहरा बनकर
कोई देखता यंहा अंधा बनकर
गुहार लगाये तो लगाये हम कंहा
जिनको बचना वो ही उजाड़ा बनाते
हैरान हूँ परेशान हूँ मै
जंहा भी जाऊं निराश हूँ

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित
बालकृष्ण डी ध्यानी
Reactions

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ