भूख बढ़ती रही प्यास बढ़ती रही
भूख मिटती नही प्यास बुझती नही
ये गरीबी की लौ क्यों बुझती नही
उम्मीद कि लौ अकेली लड़ती रही
जनांदोलन दे साथ फड़फड़ाती रही
अकेली थी अकेले पथ पर चलती रही
सफेद धोखे पे धोखे वो खाती रही
डगर ना मिली उसे जिसे वो ढूॅंढती रही
भूख बढ़ती रही प्यास बढ़ती रही
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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