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देखो ये नजारे कर रहे इशारे


देखो ये नजारे कर रहे इशारे

देखो ये नजारे कर रहे इशारे
आज जाओ पास मेरे ,चलें वंहा बाँहों के ले सहारे
देखो ये नजारे कर रहे इशारे

ऊँचे ऊँचे पर्वत है खड़े देवदार के वृक्ष घने रे
सीढ़ीनुमा खेतों के घुमावदार वो घेरे
देखो ये नजारे कर रहे इशारे

अटखेली लेती नदियाँ उनकी उछलती धार वो
हरेभरे वनों की देख ले हरी-भरी लहलहाती हरयाली
देखो ये नजारे कर रहे इशारे

प्यारी एक पगडंडी ढुलक ढुलक जाती मेरे गांव में
अतीत की पुरानी याद आ रही आम के पेड़ की छाँव में
देखो ये नजारे कर रहे इशारे

एका एक आवाज आती कौन है उस मिट्टी के टूटे घर से
मेरी आँख भर जातीं आंसूं टपक जाते उस बूढी के पग में
देखो ये नजारे कर रहे इशारे

देखो ये नजारे कर रहे इशारे
आज जाओ पास मेरे ,चलें वंहा बाँहों के ले सहारे
देखो ये नजारे कर रहे इशारे

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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