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मेरे नेता


मेरे नेता

सीमा पर खड़े मेरे बाहुबल को उजड़ते देखा
गैरों को नही अपनों को ही धोखा देते हुये देखा
क्या हुआ इस तरह ही मैंने जब
अपने पर्वतों को ही ढहते हुये देखा

आँखों को क्यों मैंने इस तरह विचरते देखा
खाकी को ही अब बस आपस में ही लड़ते हुये देखा
पर्दे पीछे ही पीछे मैंने उन्हें गले से गले लगते हुये देखा
अपने पर्वतों को ही ढहते हुये देखा

सुरंगों के लिये कभी कंही खनिज के लिये
उस लालच में बम बम के धमाकों को उड़ते देखा
हर उन धमाकों में मैंने उनको हँसते हुये देखा
अपने पर्वतों को ही ढहते हुये देखा

ऊँचे देवदारों के पेड़ों को काटते हुये देखा
जंगल के शेरों को पिजडों में मरते हुये देखा
बस एक एक कर सभी को लूट ते हुये देखा
अपने पर्वतों को ही ढहते हुये देखा

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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