हम उस महफ़िल में
हम उस महफ़िल में मशगूल थे ये ग़ालिब
साथ साथ पर सब अकेले ही नजर आये
मैंने भी वंहा अपना अकेला वो ठेला लगा दिया
बहते हुये मय में मैंने भी अपने गम को नहला दिया
हम उस महफ़िल में मशगूल थे ये ग़ालिब
साथ साथ पर सब अकेले ही नजर आये
ठहाके गूंजे यंह पर बिखरे बिखरे टूटे दिल के
हमने भी अपनी एक गजल उस फर्श पर तोड़ दी
हम उस महफ़िल में मशगूल थे ये ग़ालिब
साथ साथ पर सब अकेले ही नजर आये
कोशिशें की थी भूलने की उन्हें यूँ ही रुला दिया
यादों का आसमान सुलाने की उन्हें फिर जगा दिया
हम उस महफ़िल में मशगूल थे ये ग़ालिब
साथ साथ पर सब अकेले ही नजर आये
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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