दो आँसूं मेरे , यूँ ही गिरते रहे
दो आँसूं मेरे , यूँ ही गिरते रहे
एक बहाता रहा ,दुसरा संजोता रहा
बदलता समय ना मै पड़ सका
जिसे ना चाहा वो ही पुकारता रहा
जिस को चाहा उसने ना परवाह की
चौराहे खड़ा कर वो अपनी राह चल दिया
प्रेम का दस्तूर है ये असर एक ही है
एक समझा मुझे एक ना समझ सका
एक नर था वो एक नारी थी वो
रिश्ता मगर मेरा उन से बेटा बेटी का था
नारी के लिये नर ने ठोकर मार दी मुझे
खबर मिली मेरी बेटा भुला बेटी ने आँसूं बहा दिया
अब आजाद हूँ उन सारे बंधनो से
पर बेटी के कर्ज से एक पिता कैसे आजाद हो
दो आँसूं मेरे , यूँ ही गिरते रहे
एक बहाता रहा ,दुसरा संजोता रहा
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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