कुछ तो रखा है ,कुछ तो छुपा के
कुछ तो रखा है ,कुछ तो छुपा के
माँ ने मेरी उसके आँचल में दबा के
कुछ तो रखा है ,कुछ तो छुपा के
फूल बिछे हैं कांटे निकाल के
राहों में मेरे अपने दिल से लगा के
कुछ तो रखा है ,कुछ तो छुपा के
आँखों से देखो उसके क्या बरसा है
चूमा माथा उस ने रहमत की अदा है
कुछ तो रखा है ,कुछ तो छुपा के
कायनात क़ुदरत की धरती उतरी है
माँ शब्द पर ये खुदा तू भी झुकता है
कुछ तो रखा है ,कुछ तो छुपा के
कुछ तो रखा है ,कुछ तो छुपा के
माँ ने मेरी उसके आँचल में दबा के
कुछ तो रखा है ,कुछ तो छुपा के
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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