इन अश्कों से
कहीं गिरे ना नैनों से
इन्हे दुलार कर लो
चलो फिर आज इन अश्कों से
तुम भी प्यार कर लो
अश्क खारे खारे होंगे
फिर भी प्यारे होंगे
टपक ने ना देना ना उसे गिरने देना
व्यर्थ ही वो मोती यूँ ही सारे होंगे
कहीं गिरे ना नैनों से
इन्हे दुलार कर लो
छोड़ दो इस अहम को
जोड़ो दो उसे अपने करम से
दो फूल खिले गुलशन में
क्यों हम चुभन दें कांटे बन कर
चलो फिर आज इन अश्कों से
तुम भी प्यार कर लो
वक्त को पहचान लेना
ना यूँ तुम बिन सोचे मुँह मोड़ लेना
बीती गलियों अब भी रहा देखती होंगी
अश्कों से ही वो अब बात करती होंगी
कहीं गिरे ना नैनों से
इन्हे दुलार कर लो
चलो फिर आज इन अश्कों से
तुम भी प्यार कर लो
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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