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फिर देने लगा है




फिर देने लगा है

फिर देने लगा है गम कोई
श्याद समझ बैठा मुझे समंदर कोई

बांध अपना बांध रखा है शीशा जो चटक सा गया है
देख आईने सूरत अपनी मुझे आईना समझ बैठा है

फिर देने लगा है गम कोई
श्याद समझ बैठा है मुझे मुकदर कोई

सब ने ऐसा घेर रखा है अकेला दूर देख रहा है
आँखों में बसती है हरयाली सूखे को वो सोख रहा है

फिर देने लगा है गम कोई
श्याद समझ बैठा है मुझे रब कोई

पत्थर पत्थर पड़ा हुआ है अंदर बाहर झांक रहा है
किसने समझ लिया उसे अपना किसने परया कर दिया है

फिर देने लगा है गम कोई
श्याद समझ बैठा मुझे समंदर कोई

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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