खूब रुनु छों आच
खूब रुनु छों आच यखुली काली राता मा
झन कै की खुद ऐ रूले मि कै बाता मा
खूब रुनु छों आच यखुली काली राता मा
रुन्दा रुन्दा ना थामेन्दा आंसूं ये आँख का
झन किले छे जीयु तू रुना कैकि माया मा
खूब रुनु छों आच यखुली काली राता मा
खुद बौडी ऐ किले तू किले की बौडी गै
जान्दा जान्दा ऐ गौली थे किले भीगे की गै तू
खूब रुनु छों आच यखुली काली राता मा
पीड़ा मेर दबी छे किले उखरि की गै तू
बौल्या बाने कि मी थै तेर जीकोडी चैन नि ऐ
खूब रुनु छों आच यखुली काली राता मा
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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