.... अब भी
कैसे दिन आये कैसे दिन जाये
नींद नही आती है तन्हा रात चली जाती है
सांसे बह रही है
ना जाने आँखें क्या कह रही है
ओझल हो रहे हैं
दिन रात एक कदम दो कदम
कैसे दिन आये कैसे दिन जाये
नींद नही आती है तन्हा रात चली जाती है
पलकों में नींदें नही
सीने की धड़कन कंही
करती है बातें बस दो
वो आने वाली और जाने वाली घड़ी
कैसे दिन आये कैसे दिन जाये
नींद नही आती है तन्हा रात चली जाती है
एक कोना मेरा लगा
एक मैखान उनका सजा
वंही लूट लिया दिन रात ने बैठे बैठे
पर शौक खत्म हुआ,ना उनका .... अब भी
कैसे दिन आये कैसे दिन जाये
नींद नही आती है तन्हा रात चली जाती है
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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