गाँव मेरे गाँव
एक एक कर
खाली हो रहे हैं गाँव मेरे गाँव
जाने चली है ये कौन सी नाव
बह जा रहे हैं गाँव मेरे गाँव
एक एक कर
खाली हो रहे हैं
ना रोक रहें ना रोके जा रहे हैं
जो कदम बढे ना टोके जा रहे हैं
काट रहे हैं अपने आप से वो
इस जमीन से ही उखड़े जा रहे है गाँव मेरे गाँव
एक एक कर
खाली हो रहे हैं
ख़ामोशी से सब हो रहा
मौन हैं सब मुख बस उसे सुन रहा है
कानों को दिखता नही है अब
आँखों में वो रुई ठोस कर जा रहा है गाँव मेरे गाँव
एक एक कर
खाली हो रहे हैं
प्रतियोगिता लगी हो ऐसे
नंबर किसका पहले आयेगा जैसे
जो फेल अपनी धरा से ही हो गया
वो दूजे वंहा पास हो कर क्या पायेगा ऐसे गाँव मेरे गाँव
एक एक कर
खाली हो रहे हैं
एक एक कर
खाली हो रहे हैं गाँव मेरे गाँव
जाने चली है ये कौन सी नाव
बह जा रहे हैं गाँव मेरे गाँव
एक एक कर
खाली हो रहे हैं
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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