आज यूँ बैठ बैठ
आज यूँ बैठ बैठ
आये मेरे इस मन अनगिनत सवाल
पूछों मैं अपने से ही
क्या होगा मेरे जाने के बाद
आज यूँ बैठ बैठ
ना लिखा पाया अब तक ऐसा
जो ले आये मेरे पहाड़ों पे बसंत बहार
चला मन वो पथ अकेला अकेला
ना ला पाया उस पथ मन पग हजार
आज यूँ बैठ बैठ
कलम अगर छूट जाये
पन्ना मेरा कंही कोरा ना रह जाए
रह गया अगर वो कंही कोरा तो
पकड़ा लेना आ कर कोई मेरी कलम
आज यूँ बैठ बैठ
ना बैठे रहना तुम चुपचाप
बंद कर किवाड़ अपने खोलों के पास
उड़ जाना तुम स्वछंद मुक्त
कविता बनकर उस सोये मन जन पास
आज यूँ बैठ बैठ
आज यूँ बैठ बैठ
आये मेरे इस मन अनगिनत सवाल
पूछों मैं अपने से ही
क्या होगा मेरे जाने के बाद
आज यूँ बैठ बैठ
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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