मुझे
आगे बढ़ते
क़दमों को मैंने
जब कहा
चल लौट चल
चल जायें पीछे
आगे बढ़ते
क़दमों को मैंने .......
ना देखा
ना कुछ कहा उसने
बढ़ता रहा
वो अपनी धुन में
क्या नशा छाया था उसको
क्या नजर आया था उसमे
आगे बढ़ते
क़दमों को मैंने .......
पीछे क्या छूटता
चला जा रहा
क्यों ना वो पछता रहा
क्या अहम
क्या घमंड है
लालच का आँखों
पर पड़ा भ्रम है
आगे बढ़ते
क़दमों को मैंने .......
ठोकर लगी जब
आगे चलते चलते
याद आने लगा सब
जब देखा पीछे मोड़के
ये कंहा आ गया में
अब क्यों पछता रहा मै
जाने कौन रुला रहा मुझे
अब भी कौन आवाज दे रहा
आगे बढ़ते
क़दमों को मैंने
जब कहा
चल लौट चल
चल जायें पीछे
आगे बढ़ते
क़दमों को मैंने .......
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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