इस गम ने मुझे जीने ना दिया
इस गम ने मुझे जीने ना दिया
जी भर के भी साकी इसने पीने ना दिया
इस गम ने मुझे जीने ना दिया
अश्क निकले मगर रोने ना दिया
खोता ही रहा उन्हें तू ने पाने ना दिया
इस गम ने मुझे जीने ना दिया
लौ जलती रही और फड़फड़ाती रही
उस लौ से तू ने ना मिलने दिया ना बिछड़ने दिया
इस गम ने मुझे जीने ना दिया
बात निकली थी उनकी मगर मुझ मे अधूरी रही
ना कभी कह सका मै ना कभी तुम सुन सकी
इस गम ने मुझे जीने ना दिया
वीरानों में भी चलने ना दिया चरागों में जलने ना दिया
मुझ को क्या चाहिये था वो मुझे हासिल ना करने दिया
इस गम ने मुझे जीने ना दिया
आज लेटा हूँ कब्र में अब भी सुकून ना मुझे मिल सका
अब भी तुम याद आती रही अब भी ये तन्हाई सताती रही
इस गम ने मुझे जीने ना दिया
इस गम ने मुझे जीने ना दिया
जी भर के भी साकी इसने पीने ना दिया
इस गम ने मुझे जीने ना दिया
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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