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फिर किले तू इन जीणु



फिर किले तू इन जीणु

फिर किले तू इन जीणु
फिर किले तू इन मरणु
दीकि ले तिल ई दुनिया थे ……२
कैका बाना कु जीणु,कैका बाना कु मरणु यख
फिर किले तू इन जीणु

ना भै ना रैगे यख पैल जण कुच बि यख
बदलणी जींदगाणी बगदी जनि गंगा कि धारा
तू बि बदल दे अपरा थे
अपरा अंखियुं का सुप्निया थे
फिर किले तू इन जीणु

दैल फ़ैल का गैल च सब यख
अपरा अपरा किसमती न घैल च सब
जीयु कि नि सुणदा अब क्वी यख
बस जी टक्कों का घोळ च सब
फिर किले तू इन जीणु

फिर किले तू इन जीणु
फिर किले तू इन मरणु
दीकि ले तिल ई दुनिया थे ……२
कैका बाना कु जीणु,कैका बाना कु मरणु यख
फिर किले तू इन जीणु

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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