जियु मेरु
जियु मेरु
पाखी बण जा रे
चल चल उदी जोंलों
अपरा ई घार रे
यख काय खोज्नु रे
अंधारों ये बाटे मा रे
उजाळु बन उडी जा रे
कुच निच यख रख्युं तेरु रे
जियु मेरु
पाखी बण जा रे
चल चल उदी जोंलों
अपरा ई घार रे
अपने ई छाल मा मेलेली
वख ई सरी माया पसरी च
कन हिरदय त्यारू रे
निठुरु निठुरु कै बान ये
जियु मेरु
पाखी बण जा रे
चल चल उदी जोंलों
अपरा ई घार रे
परखे बसे बरसाकी
मेरु दुःख मेरु पासे रे
कैल ने सम्झेरे
जियु मेरु कण घेरु तेरु रे
जियु मेरु
पाखी बण जा रे
चल चल उदी जोंलों
अपरा ई घार रे
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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