आच सुबेर
आच सुबेर सुबेर
ऐई ये खैल
कैरी की सौंसरो को
मिल दैल फैल
चल खुठा चल
चल छूछा चल
ध्यै लगणु तिथे
कैथे व्हालु बुलाणु
छोड़ि कि गै छे
कु ऊ खुठा पैल भैर
चल खुठा चल
चल छूछा चल
अपरा बाना
खूब सोची तिल
वैका बाण
कब सोच्ण तिल
चल खुठा चल
चल छूछा चल
जन मि छोड़ी गयुं
ऊनि ईं छे कया तू
आँखि मा दाड़ी तेरी
ऊनि मुखडी छे मेंमा
चल खुठा चल
चल छूछा चल
खेल ई लुलू
ते दगडी भेंटि ई दुलू
मासाण माटी मा मेर
बालपाणा ते देक ई लुलू
चल खुठा चल
चल छूछा चल
आच सुबेर सुबेर
ऐई ये खैल
कैरी की सौंसरो को
मिल दैल फैल
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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