आईना देखो मैं कंही हूँ की नही
आईना देखो मैं कंही हूँ की नही
अपने को ही ढूंढता राह उम्र भर मै मिला कंही ही नही
आईना देखो मैं कंही हूँ की नही
मिल गया हो जो तुम्हें बतला देना मुझको भी
मेरा वो प्रतिबिंब जरा मुझे भी दिखला देना हो सके तो
आईना देखो मैं कंही हूँ की नही
अपने को ही ना पा सका जब खुद ही खुद से मै
क्यों खोजने चला था मैं बहार मै इस दुनिया को
आईना देखो मैं कंही हूँ की नही
उलझा ही रहा अपने ही काले साये से इस तरह
तेरा उजाला भी मुझे नाकाफी क्यों गुजरा
आईना देखो मैं कंही हूँ की नही
आईना देखो मैं कंही हूँ की नही
अपने को ही ढूंढता राह उम्र भर मै मिला कंही ही नही
आईना देखो मैं कंही हूँ की नही
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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