बिती बातें
सब बिती बातें हैं
उन बातों का क्या
पीछे वो छूटी राहें हैं
उन राह हूँ का क्या
किसको फर्क पड़ा है
जिस पर गुजरी है उसको पता है
दर्द दिल को कितना हुआ है
जिसने उसे सहा है
ये जो आँखें हैं
जा के उन से पूछो जरा
अकेल में गुमसुम क्यों
ना ऐसे तुम बहो जरा
चुपचाप खड़ी सी है
एक अनसुलझी पहेली वो
क्या मेरी सहेली है
एक अनजान गली सी वो
ना आना यंहा दुबारा
तेरा घर नही अब तू तो है बंजारा
खंडहर उजाड़ा भूमि में
कैसे अब हंसेगा तेरा वीराना
सब बिती बातें हैं
उन बातों का क्या
पीछे वो छूटी राहें हैं
उन राह हूँ का क्या
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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