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काश ! कोई महसूस करता मुझे


काश ! कोई महसूस करता मुझे

समंदर कि लहरों पर पड़ा पहरा
आँखों मे उतरा आता वो राज गहरा
टुकडों मै बेच रहे वो मेरे सपने
भेद खडे किये जिसने वो है मेरे अपने

अकसर ये होता है होता है क्यों ऐसा
बच जो जाता वो बनता है मेरा हिस्सा
किस्सा पुराना समझकर लोग मुझे भुल जाते
वही पुराने पल चंद मुझे नजर आते

आखों मे सिमटी यादों कि परछाई
अतित कि जो बची है थोडी सी गहराई
उस भरोसे से ही सांस उतर चढ़ रही है
अब भी वो नाडी ऐसे हि चल रही है

काश ! कोई महसूस करता मुझे

एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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