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कुछ छूट ना जाये यंहा पर मुझ से समेट लेने दो



कुछ छूट ना जाये यंहा पर मुझ से समेट लेने दो

यूँ ही जी रहा हूँ क्या मै यंहा पर जिंदा हूँ
आदमी तू क्यों खुद से ही अब शर्मिन्दा है

लिखना ऐसा हो की जा के रूह में बस जाना तू
ठोकर लगे अगर पर रास्ता ना भूल जाना तू

कली फूल बनकर पल मे मुरझा गयी
क्या लिखने और क्या बताने को अब रह गया

बस राख संभली है मिटटी में मिल जाने को
तू रूह उड़ जायेगी तब कर्म को साथ लेकर कहां

क्यों चुप है तू जजबात अपने बताने को
यही छूटे पल होते हैं यंहा रिश्ते निभाने को

बस महसूस करना ही यंहा पर सब कुछ है
सुख दुःख रोना हँसना बस सब यहां एक बहाने हैं

खोना है बस यंहा और क्या है यंहा पाने को
क्या रखा मुट्ठी में फिसलती रेत संभलने को

एक पल था यंहा बस उस में जीने लेने दो
एक सांस में सारी उम्र को मुझे पी लेने दो

बहुत कुछ रह गया है और मुझे कह लेने दो
कुछ छूट ना जाये यंहा पर मुझ से समेट लेने दो

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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