कविता हिंदी
चलो लिखें कविता हिंदी
भारत माँ के माथे की बिंदी
ऊषा आये रोज जगाये
भाव नये नित मन उपजाये
तब अभिभूत करे ये मन
अकिंत हो तब पन्नों में स्वर
तब हिर्दय से बहे शब्दों की गंगा
निखरे सोच सब कुछ हो चंगा
हर एक वो पटल सजायें
शब्दों से शब्दों के फूल खिलायें
तब हो नई ऊर्जा का संचार सर्वत्र
कविता साथी जब हो ऐसा
अनचाहे कितने उभरे ख़याल
सजोंये ले मैंने गमलों का आधार
पाठकों ये आप का है प्यार दुलार
इस कविता को भी अपना दो प्यार
चलो लिखें कविता हिंदी
भारत माँ के माथे की बिंदी
ऊषा आये रोज जगाये
भाव नये नित मन उपजाये
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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