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क्या करें तुम से बातें करके


क्या करें तुम से बातें करके

क्या करें तुम से बातें करके
हम अक्सर ही क्यों हार जाते हैं
दिल की राहों में जीतकर भी
क्यों अपना ही दिल तोड़ आते हैं

मौसम भी था वो साथ मेरे
तुम से मिलकर वो बेवफा हो गया
करता भी क्या मै आज अकेले
सब कुछ जब तेरा ही हो गया

पल छिन है वो बस यादें तेरी
आँसूं के साथ बह बस वो तेरा गीत है
लिखा था मैंने उसको अपने लहू से
सुखा डाल का वो पत्ता सा उड़ गया

बैठा रहा अपने से मैं अपने अंदर
तू ही मुझे बस वहां भी मिला
कुछ भी ना रहा अब कुछ भी मेरा
अब कैसा शिकवा और कैसा गिला

क्या करें तुम से बातें करके
हम अक्सर ही क्यों हार जाते हैं
दिल की राहों में जीतकर भी
क्यों अपना ही दिल तोड़ आते हैं

एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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