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वो हंसी मेरी


वो हंसी मेरी

उस क्षण मै खुश था
क्यों की मेरा कोई अपना वो खुश था
ना जाने वो आँसूं कहाँ आज गुम थे
आज वो गम का समंदर भी सामा सुम था
उस क्षण मै खुश था

उड रही थी वो हंसी
ना जाने अब तक कहाँ वो फंसी थी
खिल खिला रही थी वो अपने से ही
अपनों के संग जो आज वो खुल के मिली थी
उस क्षण मै खुश था

कुछ बोल रही थी वो
या कुछ वो कहना या बताना चाहती थी
आज मुझे लगता है वो मुझे अपना बनाना चाहती थी
बड़े दिनों बाद वो खुलकर मुझे आजमाना चाहती थी
उस क्षण मै खुश था

मै मदहोश था ना किसी को कुछ होश था
वो हँसते मुस्कुराते मुझ से चली जा रही थी
भूल गया था मै जीने को वो मुझे जीना सीखा रही थी
मुझे वो बड़े दिनों बाद अपने आप से मिला रही थी
उस क्षण मै खुश था

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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