चूल्हा जलता ही रहा क्यों वो बुझता नही
चूल्हा जलता ही रहा क्यों वो बुझता नही
धुआँ आँखों को यूँ ही चुभता रहा क्यों वो उड़ता नहीं
मेरे पहड़ों में क्यों वो थका देता है जलता ही रहा रोकता नही
भूख का और गरीबी का दमन अब यंहा से वो क्यों कर छूटता नहीं
पहाड़ों को छोड़ा देता है लकड़ी पे जलकर , मिटटी तेल में पककर
नीली गैस की आंच में भी वो अब क्यों कर मेरा खाना पकता नही
कब से भूखा है वो गरीब ,गरीबी का वो तन छुपकर
बस ऐसी आग लगी है यंहा सब राख कर जायेगी चुप कर
पानी और जवानी की बात ना कर अब यंहा सब व्यर्थ है
अब तक बची है जब तक बचा लेगी नारी मेरी वो अब भी सशक्त है
चूल्हा जलता ही रहा क्यों वो बुझता नही
धुआँ आँखों को यूँ ही चुभता रहा क्यों वो उड़ता नहीं
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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