कभी हम मिले थे यंहा
कभी हम मिले थे यंहा
प्रेम के गुल खिले थे यंहा
आज चलें फिर उन राहों में
कभी हम मिलकर चले थे जहां
कभी हम मिले थे यंहा
कोरा पन्ना दिल का मेरा था भरा
प्रेम की बरखा में था ऐसे वो भीगा
आँखों ने मेरी तब पी थी जमकर
उन पलकों ने जब देखा मुझको उठकर
कभी हम मिले थे यंहा
पहला अहसास बाकि है अब तक
मेरे अधरों की वो प्यास बाकि है अब तक
अधरों ने मेर जब तेर अधरों को था छुआ
कंपन और वो आग बाकि है अब तक
कभी हम मिले थे यंहा
वकत गुजर जाता है कहां
वो पहला प्रेम का पल हरपल रहता है जंवा
उन यादों की कश्ती ले जीवन समंदर में
मन मांझी प्रेम गीत गाता चला सदा
कभी हम मिले थे यंहा
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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