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अपने को ढूंढता रहा ..... अर्ज है......



अपने को ढूंढता रहा .....
अर्ज है......

मैंने जिसको अब तक संभला था
मुझे बेगाना कर के वो चले गये
असर हुआ उसका मुझ पर वो ऐसा
उसमें में ही मैं अब खुद को ढूंढता हूँ

अपने को ढूंढता रहा मैं
खुद को खो जाने के बाद .....२
अपने को ढूंढता रहा

पहचान भी पता कहाँ अब मै
यूँ उजड़ जाने के बाद .....२
अपने को ढूंढता रहा

असर हुआ तेरा मुझ पर अब ऐसे
सब्र जाने के बाद .....२
अपने को ढूंढता रहा

आदत लत लग गयी मुझे तेरी
ना छूटी ना टूटी यूँ आने तेरे जाने के बाद .....२
अपने को ढूंढता रहा

कोई दिवाना कहता कोई पागल समझता है
अब वो रब समझता है मेरे जाने के बाद .....२
अपने को ढूंढता रहा

अश्क गिरते हैं रिश्ते संवरते छूट जाते हैं
हल ऐसा हुआ इश्क में यारों उनके जाने के बाद .....२
अपने को ढूंढता रहा

अपने को ढूंढता रहा मैं
खुद को खो जाने के बाद .....२
अपने को ढूंढता रहा

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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