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ना जानें क्यों


ना जानें क्यों

मन क्यों डरता है डरता है
ना जानें क्यों
क्यों ये सीने में हुर्र हुर्र होती है होती है
ना जानें क्यों

अकेले हो या साथ कोई
बात हो या ना बात कोई
किसी के इन्तजार में ये दीपक जलता है तड़पता है
ना जानें क्यों

कैसे बोलों मै मुख खोलों मै
जब अब तक चुप रहा सहा
आँखों की भाषा ना कोई समझा ना समझ सका
ना जानें क्यों

वक्त इतना जितना दिल में समा
दर्द सागर में हो जिसमें जितना जमा
मै वो अधूरी नदी हूँ ना मिल पायी ना हो पायी जुदा
ना जानें क्यों

मन क्यों डरता है डरता है
ना जानें क्यों
क्यों ये सीने में हुर्र हुर्र होती है होती है
ना जानें क्यों

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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