इन सुनसान पहाड़ों में
इन सुनसान पहाड़ों में
किसने ये कहानी लिखी है जी
इन बहती नदियों में
कितनी जवानी बही है जी
इन सुनसान पहाड़ों में............
खाली ये हो रहे हैं
वो बहती ही जा रही है
पथराई वो आँखों से
बस रोती ही जा रही है जी
इन सुनसान पहाड़ों में............
कौन सुनेगा दर्द
किसको सुनाये हम
अपनों के ही दिये जख्म
किस को जी दिखाये हम
इन सुनसान पहाड़ों में............
चलता ही ये यूँ रहेगा
रोकेगा ये ना लगता अब थमेगा
जब तक खुद की सोच को
हम ना बदलेंगे ये ना बदलेगा
इन सुनसान पहाड़ों में............
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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