क्यों ना कह पाये
मैं देखता रह गया
वो पास आकर गुजर गया
उन से ये आँखें ना मिला सकी
ना ये हाले दिल बता सका
वो पास आकर गुजर गया
मैं देखता रह गया
रात भर सोचता रहा
उस चाँद से बात करता रहा
ना उन से कुछ बात कर पाया
ना चाँद मेरा सुन सका
वो पास आकर गुजर गया
मैं देखता रह गया
रोज अपने से यूँ लगा रहा
अकेले में ये दिल बड़बड़ाता रहा
बस सड़क पुल इमारत बनाता रहा
कितने मोड़ आये बस मैं मोड़ता रहा
वो पास आकर गुजर गया
मैं देखता रह गया
फ़ासले इतने बड़ गये
हम से वो दूर बहुत दूर गये
अब भी बैठे सोचते बक बकते
क्यों हम उनसे ना वो कह पाये
वो पास आकर गुजर गया
मैं देखता रह गया ................
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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