काव्य प्रवाह
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निश्छल स्वभाव
प्रबल प्रभाव
कल कल बहे
ये काव्य प्रवाह
निज मानस सुखाय
प्रजा हिताय
देश संस्कृति गाथा
गीता गीताये
अक्षर स्वराय
शब्द बनाये
स्वर गंगा
कलम स्वरुपय
स्वरचित रचना
स्वहस्त समाय
माँ वंदना
वीणा वरदय
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बालकृष्ण डी. ध्यानी
बालकृष्ण डी ध्यानी
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