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आ आ तुझे ले चलों



आ आ तुझे ले चलों

ना तू इस हरी भरी धरा की
ना तू इस नीले आसमान की
ना ही तू इस जंहाँ की
मेरे पहाड़ों की रानी हो तुम
तुम मेरे इस दिल के गुलिस्तां की

आ आ तुझे ले चलों
इन बाहों के सहारे दूर सबसे दूर
जहाँ सिर्फ हो मै और तुम
ना और कोई हो दुजा मेरी प्रिये तुम्हरे सिवाय

आँखें जहाँ बोलती हो
सारे दिलो दिमाग के वो भेद खोलती हो
उस मोड़ पर आ खड़े हो जाये दोनों
चलो हम आज फिर एक हो जाये दोनों

सदियों से है ये तेरा मेरा रिश्ता
पहाडें सुनायेंगी अब ये अपना किस्सा
फ़साना लिखने का था ये वो बहाना
गायेगा ये दिल तराना सदा तेरे लिये

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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