ADD

एक शहर था पल में टूट गया


एक शहर था पल में टूट गया

एक शहर था पल में टूट गया
कुछ हिस्सा उसका पीछे छूट गया

श्रण में ये दुनिया बदल गयी
हिचकोले ली और वो कुछ बोल गयी

अब तक मेरे साथ था पास था वो
अब उसका सांसों से नाता रूठ गया

खंडहर खंडहर बना पल में जीवन है
काठ का बना था वो भी ढह गया

रुदान ही रुदान छाया अब सर्वत्र है
आँखों ने आँसूं से फिर नाता जोड़ दिया

खोया क्या और क्या पाया मैंने
इस अहम में सारा जीवन झोंक दिया

एक शहर था पल में टूट गया
कुछ हिस्सा उसका पीछे छूट गया

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित
बालकृष्ण डी ध्यानी
Reactions

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ