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श्रद्धा-सुमन


श्रद्धा-सुमन

श्रद्धा-सुमन
मेरे इन दो आँखों से
गिरे अश्रु उन पर फूल बनकर
खिले वो घाटी घाटी
इस चमन पर महक कर
कहीं दबे वो कहीं पर बहे
किसी को मिली चिता
किसी को ये गंगा का पानी
कोई अब तक बिखरा पड़ा
कोई अब तक खोजता फिर रहा
कुछ को दर्द मिला
कुछ को चैन मिला
कोई भटक रहा यंहा वहां
कोई अब भी वहीँ पर अटका हुआ
कैसा उछाल आया
सब कुछ बहा ले गया
मौका भी ना मिला संभल पाने को
जहां भी हों वो सब
उन्हें सकून मिले
तेरे चरणो में
ना फिर ऐसा सैलाब आये
ये ही प्रार्थना मेरी
वो केदरनाथ बाबा मेरे
श्रद्धा-सुमन
मेरे इन दो आँखों से
गिरे अश्रु उन पर फूल बनकर

बालकृष्ण डी. ध्यानी
बालकृष्ण डी ध्यानी
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