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मै अपने पहड़ों पे लिखता चला गया


मै अपने पहड़ों पे लिखता चला गया

मै अपने पहड़ों पे लिखता चला गया
नये सोच नये विचारों को गढ़ता
मै उस पर चलता चला गया
मै अपने पहड़ों पे लिखता चला गया

पुराने को सँजोना था नये को अपनान था
मै उस में समन्वय को बिठाने को
मै उस पर चलता चला गया
मै अपने पहड़ों पे लिखता चला गया

इस पथ पर और भी पहले पथिक चले होंगे
एक सड़क जो उनके क़दमों से बनी होगी
मै उस पर चलता चला गया
मै अपने पहड़ों पे लिखता चला गया

मेरे पीछे पीछे और आयेंगे ये मुझको यकीन है
इस के पथ पे बिछे उन काँटों को
मै चुनता चला गया
मै अपने पहड़ों पे लिखता चला गया

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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