मै पहाड़
सब कहते हैं मुझे
यंहा पर कुछ नही रखा
मै पूछों अब तक आप ने
अपने आँसूं कहाँ छुपा रखा
खाली खाली कर मुझे
जब तू यंहा से चलने लगा
बंजर बंजर सा मै
अब चारों और दिखने लगा
असमर्थ से हारकर तू
जब परेशान हो यंहा से चला
पीछे पीछे मै
तेरे संग बहुत दूर तक चला
अब लौटेगा अब लौटेगा
मै अपने से कहता रहा
ना मोड़े एक बार भी तेरे कदम
मै बस देखता रहा
प्रवासी होकर मेरे बारे में
अब तू सोचना बंद कर दे
तूने जो जख्म दिये हैं मुझे
यूँ ना तू उसे रोज हरे कर दे
तेरा विवश होना मेरे बारे में
अब खूब अखरता है मुझे
जैसा भी हूँ मै जिस हाल में
अब तो मुझे ज़िंदा रहने दे ……
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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