ADD

मेरी बात राई में दगडी ..........



मेरी बात राई में दगडी ..........

मेरी बात राई में दगडी
वहै गे प्रभात देख कै दगडी
कण रात ग्याई मि जंणदू
अपरू दुःख मि अफि सरदु
मेरी बात राई में दगडी ..........

बैठ्युं राई अपरि मि
कोई नि आई यखरि मा मि
कैल नि अब मि ध्यै लगे
दूर भ्तेकी बी वेळ नि बचे
मेरु स्वास में मा राई
में दगडी ही वा यखुली ग्याई
मेरी बात राई में दगडी ..........

ये अंधारु उजाळु को खेल
बिठे नि पाई मि विं दगडी मेल
झुक झुक कैकि दिस ऐई गैई
छूटी ग्याई मेर ज्योंदगी की रेल
सज नि आई या खेल नि पाई
दूर बैठिक मि बस देख्दी राई
मेरी बात राई में दगडी ..........

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/
http://www.merapahadforum.com/
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार —
बालकृष्ण डी ध्यानी
Reactions

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ