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अब मै बोलता कम हूँ



अब मै बोलता कम हूँ

अब मै बोलता कम हूँ
अपना मुख खोलता कम हूँ
देख जमाने की बेरुखी को
अपनी नजरों को अब तौलता कम हूँ
अब मै बोलता कम हूँ

जग में कैसे कैसे बंदे हैं
आँखे होकर भी वो अंधे हैं
अब अपनी आँखों को बंद कर लेता हूँ मै
अँधेरे में ही सब कुछ देख लेता हूँ मै
अब मै बोलता कम हूँ

सड़े टमाटर कहीं सड़े अंडे मिले
सत्य की राह पर अब वो मिल के चले
चप्पल बूट पड़े और तमाचे खाये मैंने
लिखे मेरे लेख राख की ढेर पर पाये मैंने
अब मै बोलता कम हूँ

फिर भी ना डगमग हुये मै और मेरे विचार
मेरे पथ पे वो चले निर्भय अंत तक मेरे साथ
वो सत्य मेव जयते की मशाल जलता हूँ मै
अब भी खुद को अंधेर में खड़ा पाता हूँ मै
अब मै बोलता कम हूँ

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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